चित्रों के रंग संयोजन , रेखांकन .. आदि की समझ तो नहीं है फिर भी मैं कह सकती हूँ कि विन्सेंट एक महान कलाकार था... सिर्फ महान कलाकार ही नहीं एक महान और पवित्र आत्मा भी। हाँ मैं जानती हूँ कि वह कई बार वेश्यालय पर भटका था , एक वेश्या को पत्नी का दर्जा दिया और कई लांछन झेले ... भारतीय सभ्य समाज में ऐसा इंसान निकृष्ट माना जा सकता है, पर मेरी नज़र में ऐसा इंसान उत्कृष्ट है क्यूंकि उसकी आत्मा पवित्र है, वो प्रेम की तलाश में भटका , हालांकि वो प्रेम में हमेशा बदनसीब ही रहा।
इरविंग स्टोन द्वारा लिखित उपन्यास "लस्ट फॉर लाइफ " जो कि विन्सेंट वान गोघ , डच पेंटर , की जीवनी पर आधारित है , पढने के बाद मुझे लगा मैं विन्सेंट की आत्मा में उतर चुकी हूँ... जैसे उसे मैंने अपने सामने चित्र बनाते हुए देखा हो... उससे भी बढ़कर उसका पागलपन मुझे उसकी ओर आकर्षित करता है.... कुछ तो था उसमें... और उसका असफल जीवन जब उसके मरने के बाद सफलता की चरम पर पंहुचा उसका जीवन सार्थक हो चुका था... वो जो काम करने आया था उसने किया--- उसने खुद को एक माध्यम चुन कर अभिव्यक्त कर दिया था।
क्या मैंने विन्सेंट को पूरी तरह जान लिया है? क्या मुझे उससे प्यार हो गया है? नहीं, वो किसी नोवेल का चरित्र मात्र नहीं है, वह इतिहास की एक सच्चाई है, मुझे उससे प्यार नहीं हो सकता। मैं अब भी उसे मुर्ख मानती हूँ। वह मुझे एक आइने - सा लगता है मैं खुद की हल्की परछाई इस आइने में देख सकती हूँ। विन्सेंट बेहद संवेदनशील और प्रकृतिप्रेमी था। मुझे विश्वास है जब वह सुबह उगते सूरज को दूर पहाड़ी के पीछे से झांकता हुआ देखता होगा... उसकी आत्मा शरीर के बाहर कूद कर आना चाहती होगी ... हरियाली और बहती हुई नदी उससे बातें किया करते होंगे... सूरजमुखी का शानदार चित्र वह तभी बना सका होगा जब उन्हें देख कर उसके भीतर भी एक सूरजमुखी उगा होगा... काली रात की चादर पर कई तारे बिखेरने में उसने अपने दर्द में से सपनों को छाना होगा। सच! कैसा महसूस होता होगा उसे प्रकृति की गोद में, शायद वह भी उन्हें शब्दों में नहीं बता सकता था।
विन्सेंट के चित्र देखने लायक हैं और उसका जीवन पढने लायक। जितनी उसकी पेंटिंग्स दिल को छूती हैं, उतना उसका जीवन आत्मा के भीतर उतर जाता है। वह दुनिया का हीरो नहीं था, वह दुनिया से हारा था.. नहीं ! दुनिया ने उसे हारा था... बोरिनाज़ के जिन मजदूरों की सेवा उसने की उन्होंने उसे नाम दिया था - जीसस क्राइस्ट। पर क्या वह जीसस क्राइस्ट था जबकि उसने आत्मा के आनंद को धर्म से ऊपर रखा था। और ये रास्ता कोई बुरा नहीं है ... आखिर हर किसी को अपना रास्ता स्वयं चुनना होता है विन्सेंट ने वो रास्ता चुना कई मुश्किलों के बाद भी उस पर टिका रहा...और अंत में .... अंत में.... वह जीत गया। हाँ विन्सेंट का जीवन सार्थक हुआ उसने स्वयं को पा लिया.... स्वयं को खोने के बाद।
- ओजसी मेहता
bahut sundar. maine pichhle dinon me is kitab ko teesri bar padha.
ReplyDeletethank you shaayda ji :)
ReplyDeleteइस भावपूर्ण प्रस्तुति के लिये धन्यवाद! पढ़कर बेहद अच्छा लगा ।
ReplyDeletethank you vivek :)
ReplyDeleteWell i sure need to read the book now!
ReplyDeletegreat yaar... my english is not good... aise hi hindi mein khub likha karen...
ReplyDeletethank you .... :)
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